मीरा थी शाम कि दिवानी
और मै हु उस चांद कि दिवानी
निकलता है वोह हर पुनम कि रात
शायद मेरा हि दिल बेहलाने
तू ही मेरा यार है, मेरा हमनफ़स है
मेरी हर आह का खामोश पहेरेदार है
तुझसे कौनसे गिले शिकवे
तू ही तोह मेरे हर जख्म की दवां
है
तुम्हारी जोगन बनु मै हर अमावस
कि रात
तुम्हारे दिदार को तरसती हु
मै हर अमावस कि रात
ए चांद अब सुरज भी लगे मुझे दुश्मन मेरा
अब तुही समझा इस दिन को जरा
तुझे हि चुना है मैने मेरा हमसफ़र
जो दे मुझे साथ हर नगर
मुझे किसी और कि क्यु हो तलाश
जब तुम्हारा शितल प्यार है हरदम मेरे साथ
बतादे उन तमाम मेरे आशिकोंको
कोई नही वर्षा-ए-रुह काबिल
वो तो है चांद कि दिवानी
बस वोही है एक उसके काबिल
Varsha
Varsha
7 comments:
All the Best for more to come Gazals..
मैंने देखा, मैं जिधर चला,
मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!
टूटा न ध्यान, सोचता रहा
गति जाने अब ले चले किधर!
थे थके पाँव, बढ गए किंतु
चल दिये उधर, मन हुआ जिधर!
पर जाने क्यों, मैं जिधर चला
मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!
पीले गुलाब-सा लगता था
हल्के रंग का हल्दिया चाँद!
मैं मौन विजन में चलता था,
वह शून्य व्योम में बढता था;
कल्पना मुझे ले उड़ती थी,
वह नभ में ऊँचा चढ़्ता था!
अस्ताचल में ओझल होता शशि
मैं निद्रा के अंचल में,
वह फिर उगता, मैं फिर जगता
घटते बढते हम प्रतिपल में!
मैनें फिर-फिर अजमा देखा
मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!
वह मुझसा ही जलता बुझता
बन साँझ-सुबह का दिया चाँद!
Kedar he tumhi lihile aahe? Bahot khub
जियो मोहतरमा... जियो !!
Thanks Vishal.
मी? नाही मी नाही लिहिलेली, तुमची कविता वाचुन "नरेंद्र शर्मा" म्हणून कवी आहेत त्यांची कविता आठवली म्हणून शेअर केली बास। आम्हाला कधी लिहायचो एवढा चांगल.
Post a Comment