सपने भी आजकल वास्तव जैसे आते है,
सपनॊंने भी अगर सपनापन छोडा,
तो आदमी जाए तो जाए कहा?
वास्तव का एक है वोह कभी अपनी पहचान खोता नही,
भुलेसेभी वोह कभी सपनोंकी तरहा अच्छा होता नही,
पर आजकल सपनेभी अपनी अच्छाई छोडने लगे है,
दो पल के सुकुन की अब वोह भी किंमत मांगने लगे है !
(Varsha - 27th Nov 10)
Saturday, November 27, 2010
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2 comments:
वक्त की मार से सपने भी नहीं बच सके - निराली सोच - बहुत सुंदर
dhanyawaad rakeshji.
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