Thursday, March 20, 2014

चांद

मीरा थी शाम कि दिवानी
और मै हु उस चांद कि दिवानी
निकलता है वोह हर पुनम कि रात
शायद मेरा हि दिल बेहलाने

तू ही मेरा यार है, मेरा हमनफ़स है
मेरी हर आह का खामोश पहेरेदार है
तुझसे कौनसे गिले शिकवे
तू ही तोह मेरे हर जख्म की दवां है

तुम्हारी जोगन बनु मै हर अमावस कि रात
तुम्हारे दिदार को तरसती हु मै हर अमावस कि रात
ए चांद अब सुरज भी लगे मुझे दुश्मन मेरा
अब तुही समझा इस दिन को जरा

तुझे हि चुना है मैने मेरा हमसफ़र
जो दे मुझे साथ हर नगर
मुझे किसी और कि क्यु हो तलाश
जब तुम्हारा शितल प्यार है हरदम मेरे साथ

बतादे उन तमाम मेरे आशिकोंको
कोई नही वर्षा-ए-रुह काबिल
वो तो है चांद कि दिवानी
बस वोही है एक उसके काबिल
Varsha