Friday, July 19, 2013

निर्मोही

जिंदगीके इस मोडपर ना किसीसे गिला है ना ही किसीसे शिकवा
ना हि ये जानने कि तमन्ना कि क्या तुमने मुझसे कभी सच में प्यार किया था?
अभी ना वोह पुनम के चांद से शिकवा है कि क्यु नही मेरा हमनफ़ज आज मेरे साथ है
अभी ना वोह हवा से, तारोंसे मेरे यार के लिए कोई संदेसा है
अभी ना वोह बेगानी, अकेली रातोंसे मुझे कुछ केहेना है
अभी ना वोह दिल जलाने, तडपने का कोई शौक है
अभी है तोह सिर्फ़ खुदको जानने कि तलफ़
खुदी से इश्क करने कि चाह
मै हि मजनु, मै हि लैला
मै हि ईश्वर, और मै हि भक्त
Varsha

1 comment:

Anonymous said...

कविता मस्त आहे. LIKE.